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Saturday, October 23, 2010

मुझे डूबता भी देख...

तुम्हीं ने कहा था कि, मैं कश्ती पे बोझ हूँ |

अब आँखों को न कर बंद, मुझे डूबता भी देख ||

चला गया कोई ...


न हाथ पकड़ सके और न थाम सके दामन ,


बहुत करीब से उठकर चला गया कोई ||

उन अश्कों की खातिर...

बहुत रोये हैं उन अश्कों की खातिर ,

जो निकलते हैं ख़ुशी की इन्तेहाँ पे ||

खुदा की याद ...


रहने दो मुझे फ़साने से भरी दुनिया में

मस्जिद से ज्यादा खुदा
की याद यहाँ आती है

वक़्त-ए-दफ़न...


मुट्ठियों में राख लेकर आए दोस्त वक़्त-ए-दफ़न,


ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने ||

आंसू...


एक आंसू कह गया सब हाल दिल का,

मैं सोचता था ये ज़ालिम बेजुबान है

मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा...


मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा

दिल कि दहलीज़ को अश्कों से सजाने में रहा

मुड़ गए वो तो सिक्को की खनक सुनकर

मैं गरीबी की लकीरों को मिटाने में रहा

हम रोये ही नहीं...

पलकों के किनारे जो हमने भिगोये नहीं

वो सोचते हैं कि हम रोये ही नहीं

वो पूछते हैं कि ख्वाबों में किसे देखते हो ?

और हम हैं कि इक उमर से सोये ही नहीं

Thursday, October 21, 2010

कश्मीर ...

फलों की नज़र-नवाज़ रंगत देखी

मखलूक की दिल-गुदाज़ हालत देखी

कुदरत का करिश्मा नज़र आया कश्मीर

दोजख में समोई हुई जन्नत देखी


*****


इस बाग में जो कली नज़र आती है

तस्वीर-ए-फ़सुर्दगी नज़र आती है

कश्मीर में हर हसीन सूरत 'फानी'

मिटटी में मिली हुई नज़र आती है


- फानी बदांयुनी