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Saturday, April 17, 2010

ख्वाहिश ...


वो नींद की हल्की साज़िश थी ?


या दिल की कोई ख्वाहिश थी ?


जब मैंने तुमको देखा था


जब मैंने तुमको जाना था


तुम दूर हो कर भी पास हुए


इन आँखों का एक ख्वाब हुए


तुमसे जब-जब मैं मिलती हूँ


तो हर दम सोचा करती हूँ


कोई ख्वाब हो या एक आस हो तुम


मेरे होने का एहसास हो तुम


सच में गर तुमसे कह दूं मैं


शायद अब सबसे खास हो तुम


तुम न जाना अब दूर कहीं


मेरे बनके रहना सदा यूँही


एक खुशबु हर सू फैली है


रंगों में अब रंगीनी है


शबनम की बूँदें पत्तों पर


गिर कर मुझसे ये कहती हैं


वो नींद की हल्की साज़िश थी ?


या दिल की कोई ख्वाहिश थी ?



शीबा परवीन

Tuesday, April 13, 2010

कौन हूँ मैं...?

कौन हूँ क्या ये जानती हूँ मैं ?

शायद खुद ही को नहीं पहचानती हूँ मै !

कौन हूँ ... ?

मात-पिता से नाम मिला है ,

खान-पान-आराम मिला है,

समाज में स्थान मिला है,

किन्तु सोच रही हूँ मैं,

क्या खुद की है पहचान कहीं पर ?

लेकर यही प्रश्न हृदय में,

अपनी राह बनाती हूँ मैं ,

कौन हूँ क्या ...?

मेरी भी एक राह अलग हो,

जग में मेरा स्थान अलग हो,

पर,

क्या खुद को परिचय जानती हूँ मैं ?

कौन हूँ क्या ... ?

देख के सब कयास लगाते,

मेरा आईना मुझे दिखाते ,

मुझे बदलने को तत्पर सब,

अपनी -अपनी राह बताते,

क्यूँ वे मुझे राह दर्शाते,

भ्रमित होते राहों से !

क्या खुद की राह जानते हैं वे ?

पर अंतर्मयी राह बनाती,

लक्ष्य सिमरती पग बढाती,

यात्रा का आनंद उठाती हूँ मैं ,

हाँ अब खुद को पहचानती हूँ मैं ...!

आकांक्षा शर्मा

http://www.jhanjhawaat.blogspot.com/

Friday, April 9, 2010

इन्तेहाँ...

ज़ब्त की इन्तेहाँ भला और क्या होगी फ़राज़ ?

वो हमीं से लिपट के रोये किसी और के लिए ...!

अहमद फ़राज़

मासूमियत...


जी चाहता है उन्हें मुफ्त में जान दे दूँ फ़राज़,

ऐसे मासूम खरीदार से क्या लेना - देना ...!

अहमद फ़राज़

Monday, April 5, 2010

दूर है मंजिल नहीं...

दूर है मंजिल नहीं; ग़र उमंग है प्राण में,

ध्येय पथ पर, बस अडिग राही सदा चलता रहे...


ज़रा खेल पथ के शूल से, छूते ही अनुभूति होगी फूल की.

चिलचिलाती धूप होगी चांदनी, वायु भी होगी तेरे अनुकूल ही,

राह हर मंजिल तेरी वरदान तुझको है यही,

मार्ग का हर एक पत्थर पैर नित मलता रहे,

ध्येय पथ पर...


बाल; यौवन और वृद्धा; श्वांस के, ये तीन हैं डग; जिंदगी की चाल के,

सौगंध तुझको; सोच मत आराम की, अभी पोंछना भी; मत पसीना भाल से.

श्वांस पथ के प्राण राही को दिखाने रास्ता,

हर मनुज 'आकाश दीपक' सा सदा जलता रहे,

ध्येय पथ पर...


बन रहे हैं जो मसीहा शांति के, हैं छिपाए आग दिल में बैर की.

ताल-सुर सब एक लय में हैं बंधे, गा रहे मुख से मगर हैं भैरवी.

एक लय हो जाये हमारी रागिनी बस इसलिए,

अलगाववादी राग का हर साज ही रीता रहे,

ध्येय पथ पर...


लूटने की चाह से प्रतिदिन सभी को, घूमते हैं जो वो बस हैवान हैं.

मेहनत की इक रोटी को भी; जो प्यार से, बांटकर खाते; वही इंसान हैं.

यह सृष्टि ही संपत्ति है; हर कर्मरत इंसान की,

कर्महीन इंसान; अपने हाथ बस मलता रहे,

ध्येय पथ पर...


देवास दीक्षित

Saturday, April 3, 2010

सजा बन जाओ तुम...

दिल के रंजो-ग़म की दवा बन जाओ तुम...


या दिल के ज़ख्मो को जो दे सुकूं,

एक बार ऐसी हवा बन जाओ तुम...


इस कदर चाहा है तुमको रात-दिन,

मेरी रूह में बसकर, मेरे ख़ुदा बन जाओ तुम...


कभी ख्वाबों में, यादों में क्यों आते हो तुम,

आना है तो, मेरी यादों का काफिला बन जाओ तुम...


जाने से तेरे, रुक सा गया है सब कुछ,

जो थम गया है, वो सिलसिला बन जाओ तुम...


हो सके तो एक बार फिर चाहो मुझे इतना,

दुनिया के लिए मोहब्बत की, इन्तहां बन जाओ तुम...


तेरे आने की उम्मीद में कब से बैठे है हम,

ख़त्म करदे जो मेरी आस, ऐसा ज़लज़ला बन जाओ तुम...


कुछ ऐसा करो मेरे एहसासों के साथ,

रोते-रोते हँसने की अदा बन जाओ तुम...


तोड़ना है तो मेरे दिल को इस कदर तोड़ो,

मेरी वफ़ाओ की सजा बन जाओ तुम...

हिमांशु डबराल

महफ़िल...

महफ़िल सजी है आज कवि सम्मलेन की...

आप के हमारे भाव दिल के मिलेंगे आज

फूट फूट बरसेंगी रस की फुहारें आज

छैल-सुर-ताल आज शोभा बढ़ाएंगी

सजदा करेगी रात चांदनी गगन की

महफ़िल सजी है ...

जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'