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Thursday, May 27, 2010

आकांक्षा...

जग में प्रेम की ज्योति जला दूँ मैं

जग में प्रेम की ज्योति जला दूँ मैं

पुण्य धरा पर सुंदरतम

प्रेम प्रकाश फैला दूँ मैं

जन-मन-हिय में अनुपम

स्वर्गिक आभास दिला दूँ मैं


जन-जन जो शोषित, पीड़ित
पंक दलित हर सुविधा रहित
आशादीप उस दिल में जगाकर
जीवन प्रीती का राग दूँ मैं


प्रीती के हर रूप हर रागिनी में
जीवन ध्येय की श्वेत रौशनी में
जीवन का नैसर्ग दिखाकर
राह में उसके उत्साह भर दूँ मैं


जग में प्रेम की ज्योति जला दूँ मैं

जग में प्रेम की ज्योति जला दूँ मैं

पंकज बोरा





Thursday, May 6, 2010

शायरी...

हमने तो चलायी थीं रेत पे उंगलियाँ

न जाने ... कैसे उनकी तस्वीर बन गयी