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Monday, January 17, 2011

प्रत्याशा...


आज निकल जाने को बिकल मन

यह तम गहन संकीर्ण रहन

निशा ध्रुव यह नरक दिशा

मन में सुचिता का वसन रहन




नव रागिनी छेड़कर नव बाट पर

नव सृष्टी कर नव ललाट पर

तन मन की शक्ति अखिल, साथ कर

चिर प्यास बुझाने नव घाट पर


पंकज बोरा
www.utkarshnav.blogspot.com


1 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

सुन्दर प्रस्तुति।