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दुश्मनों की दोस्ती है अब अहले वतन के साथ
है अब खिजाँ चमन मे नये पैराहन के साथ
सर पर हवाए जुल्म चले सौ जतन के साथ
अपनी कुलाह कज है उसी बांकपन के साथ
किसने कहा कि टूट गया खंज़रे फिरंग
सीने पे जख्मे नौ भी है दागे कुहन के साथ
झोंके जो लग रहे हैं नसीमे बहार के
जुम्बिश में है कफस भी असीरे चमन के साथ
मजरूह काफले कि मेरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहजन के साथ
मजरूह सुल्तानपुरी
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं
ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं
बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं
ख़ुमार बाराबंकवी
तेरी अहमियत, ज़रुरत,मोहब्बत और जज्बात
सबका एहसास हुआ आज तेरे जाने के बाद ||
जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'
वो गजल वालों का उस्लूब* समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे खूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मोहब्बत की ज़बाँ खुशबू है
फूल से लोग इसे खूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब** समझते होंगे
* शैली
** बुरा
डॉ. बशीर बद्र