Pages

Monday, April 5, 2010

दूर है मंजिल नहीं...

दूर है मंजिल नहीं; ग़र उमंग है प्राण में,

ध्येय पथ पर, बस अडिग राही सदा चलता रहे...


ज़रा खेल पथ के शूल से, छूते ही अनुभूति होगी फूल की.

चिलचिलाती धूप होगी चांदनी, वायु भी होगी तेरे अनुकूल ही,

राह हर मंजिल तेरी वरदान तुझको है यही,

मार्ग का हर एक पत्थर पैर नित मलता रहे,

ध्येय पथ पर...


बाल; यौवन और वृद्धा; श्वांस के, ये तीन हैं डग; जिंदगी की चाल के,

सौगंध तुझको; सोच मत आराम की, अभी पोंछना भी; मत पसीना भाल से.

श्वांस पथ के प्राण राही को दिखाने रास्ता,

हर मनुज 'आकाश दीपक' सा सदा जलता रहे,

ध्येय पथ पर...


बन रहे हैं जो मसीहा शांति के, हैं छिपाए आग दिल में बैर की.

ताल-सुर सब एक लय में हैं बंधे, गा रहे मुख से मगर हैं भैरवी.

एक लय हो जाये हमारी रागिनी बस इसलिए,

अलगाववादी राग का हर साज ही रीता रहे,

ध्येय पथ पर...


लूटने की चाह से प्रतिदिन सभी को, घूमते हैं जो वो बस हैवान हैं.

मेहनत की इक रोटी को भी; जो प्यार से, बांटकर खाते; वही इंसान हैं.

यह सृष्टि ही संपत्ति है; हर कर्मरत इंसान की,

कर्महीन इंसान; अपने हाथ बस मलता रहे,

ध्येय पथ पर...


देवास दीक्षित

2 टिप्पणियाँ:

शागिर्द - ए - रेख्ता said...

मुशायरे में आपका स्वागत है देवास भाई | बहुत सुंदर रचना | शब्दों और भावों का बेजोड़ तालमेल है आपकी रचना में | बहुत अच्छा | बने रहिये... | ये तो बस पहला दौर है ... अभी तो मुशायरे का परवान चढ़ना बाकी है...| पुनः हार्दिक स्वागत एवं ढेरों बधाई...|

देवास दीक्षित said...
This comment has been removed by the author.