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Saturday, August 21, 2010

पत्थर हूँ न ...

पत्थर हूँ ना
खण्ड- खण्ड
होना मंजूर
पर पिघलना
मंजूर नहीं

स्थिर , अटल
रहना मंजूर
पर श्वास , गति
लय मंजूर नहीं

पत्थर हूँ न
पत्थर - सा
ही रहूँगा
अच्छा है
पत्थर हूँ
कम से कम
किसी दर्द
आस , विश्वास
का अहसास
तो नहीं
कहीं कोई
जज़्बात तो नहीं
किसी गम में
डूबा तो नहीं
किसी के लिए
रोया तो नहीं
किसी को धोखा
दिया तो नहीं

अच्छा है
पत्थर हूँ
वरना
मानव
बन गया होता
और स्पन्दनहीन बन
मानव का ही
रक्त चूस गया होता

अच्छा है
पत्थर हूँ
जब स्पन्दनहीन
ही बनना है
संवेदनहीन
ही रहना है
मानवीयता से
बचना है
अपनों पर ही
शब्दों के
पत्थरों से
वार करना है
मानव बनकर भी
पत्थर ही
बनना है
तो फिर
अच्छा है
पत्थर हूँ मैं

- वंदना गुप्ता
vandana-zindagi.blogspot.com

4 टिप्पणियाँ:

Coral said...

पत्थर हूँ ना
खण्ड- खण्ड
होना मंजूर
पर पिघलना
मंजूर नहीं
_______

बहुत सुन्दर रचना

Sunil Kumar said...

मानव बनकर भी
पत्थर ही
बनना है
तो फिर
अच्छा है
पत्थर हूँ मैं
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

A.K. Scrap Metal Recyclers www.akworldwide.org said...

'parthar hon' is good. it is not good, it is very very good. please continue.......
shiv narayan jangra
ceo raftaar news channel

daanish said...

पत्थर को प्रतीक मान कर
कही गयी
दिल की बहुत सारी बातें...
अच्छा प्रयास है !