मोहब्बतों को सलीका सिखा दिया मैंने
तेरे बगैर भी जी कर दिखा दिया मैंने
बिछड़ना - मिलना तो किस्मत की बात है लेकिन
दुआएं दे तुझे शायर बना दिया मैंने
जो तेरी याद दिलाता था चहचहाता था
मुंडेर से वो परिंदा उड़ा दिया मैंने
जहाँ सजा के मै रखती थी तेरी तस्वीरें
अब उस मकान में ताला लगा दिया मैंने
ये मेरे शेर नहीं मेरे जख्म हैं अंजुम
ग़ज़ल के नाम पे क्या - क्या सुना दिया मैंने
- अंजुम रहबर
5 टिप्पणियाँ:
सच मोहब्बत का सलीका सिखा ही दिया………………एक बेहद शानदार गज़ल्………भाव भिगो रहे हैं।
वल्लाह...सुभान अल्लाह...
इस शानदार रचना पर कमेन्ट करना मेरे हिसाब से ठीक न होगा...
KYA BAAT HAIN....
वाह बहुत शानदार................
Sach me pyar kya hota hai .......apse behtar koi nahi bata payega........bahut acchi rachna aur aap gati bhi bahut accha ho.....
Pro. Dipak Vishwasrao Patil
Dhule (Maharasthra)
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