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Saturday, August 21, 2010

पत्थर हूँ न ...

पत्थर हूँ ना
खण्ड- खण्ड
होना मंजूर
पर पिघलना
मंजूर नहीं

स्थिर , अटल
रहना मंजूर
पर श्वास , गति
लय मंजूर नहीं

पत्थर हूँ न
पत्थर - सा
ही रहूँगा
अच्छा है
पत्थर हूँ
कम से कम
किसी दर्द
आस , विश्वास
का अहसास
तो नहीं
कहीं कोई
जज़्बात तो नहीं
किसी गम में
डूबा तो नहीं
किसी के लिए
रोया तो नहीं
किसी को धोखा
दिया तो नहीं

अच्छा है
पत्थर हूँ
वरना
मानव
बन गया होता
और स्पन्दनहीन बन
मानव का ही
रक्त चूस गया होता

अच्छा है
पत्थर हूँ
जब स्पन्दनहीन
ही बनना है
संवेदनहीन
ही रहना है
मानवीयता से
बचना है
अपनों पर ही
शब्दों के
पत्थरों से
वार करना है
मानव बनकर भी
पत्थर ही
बनना है
तो फिर
अच्छा है
पत्थर हूँ मैं

- वंदना गुप्ता
vandana-zindagi.blogspot.com

Tuesday, August 10, 2010

यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान ...

जीना है दुश्वार यहाँ पर
मरना है आसान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान

भाषाएँ भी हुयी सियासी, गुंडों का हथियार
तुलसी - मीर - कबीर की कीमत, दो पैसे में चार

फुटपाथों पर भटक रहे हैं, ग़ालिब और रसखान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान


बहरे बैठे सुने दादरा , गूंगे गीत सुनाये
पागल सबकी करे पैरवी , अंधे चित्र बनाये

चोर उचक्कों का होता है, रोज़ यहाँ सम्मान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान


फूलों जैसे होठों पर भी, ज़हर भरी नफरत है
बिजली के खम्भों पर पीली, और हरी नफरत है

लाल रंग में डूब गए हैं सब खाकी के थान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान


सबसे ऊँचे लोग हैं वो जो कुर्सी के बन्दे हैं
कैसा मंदिर कैसी नस्जिद सब इनके धंधे हैं

ठोकर में ईमान है इनकी जेबों में भगवान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान


नोटों की पटरी पर चलती है वोटों की रेल
बी ए पास मिलें चपरासी मंत्री चौथी फेल

दीवारों पर यहाँ लिखा है समय बड़ा बलवान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान

जीना है दुश्वार यहाँ पर
मरना है आसान
यह है हिन्दुस्तान हमारा , प्यारा हिन्दुस्तान


- अंजुम रहबर

Tuesday, August 3, 2010

मोहब्बतों को सलीका ...


मोहब्बतों को सलीका सिखा दिया मैंने

तेरे बगैर भी जी कर दिखा दिया मैंने



बिछड़ना - मिलना तो किस्मत की बात है लेकिन

दुआएं दे तुझे शायर बना दिया मैंने



जो तेरी याद दिलाता था चहचहाता था

मुंडेर से वो परिंदा उड़ा दिया मैंने



जहाँ सजा के मै रखती थी तेरी तस्वीरें

अब उस मकान में ताला लगा दिया मैंने



ये मेरे शेर नहीं मेरे जख्म हैं अंजुम

ग़ज़ल के नाम पे क्या - क्या सुना दिया मैंने



- अंजुम रहबर