तुम्हीं ने कहा था कि, मैं कश्ती पे बोझ हूँ |
अब आँखों को न कर बंद, मुझे डूबता भी देख ||
Saturday, October 23, 2010
मुझे डूबता भी देख...
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


चला गया कोई ...
न हाथ पकड़ सके और न थाम सके दामन ,
बहुत करीब से उठकर चला गया कोई ||
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


उन अश्कों की खातिर...
बहुत रोये हैं उन अश्कों की खातिर ,
जो निकलते हैं ख़ुशी की इन्तेहाँ पे ||
जो निकलते हैं ख़ुशी की इन्तेहाँ पे ||
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


खुदा की याद ...
रहने दो मुझे फ़साने से भरी दुनिया में
मस्जिद से ज्यादा खुदा की याद यहाँ आती है
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


वक़्त-ए-दफ़न...
मुट्ठियों में राख लेकर आए दोस्त वक़्त-ए-दफ़न,
ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने ||
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


आंसू...
एक आंसू कह गया सब हाल दिल का,
मैं सोचता था ये ज़ालिम बेजुबान है
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा...
मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा
दिल कि दहलीज़ को अश्कों से सजाने में रहा
मुड़ गए वो तो सिक्को की खनक सुनकर
मैं गरीबी की लकीरों को मिटाने में रहा
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


हम रोये ही नहीं...
पलकों के किनारे जो हमने भिगोये नहीं
वो सोचते हैं कि हम रोये ही नहीं
वो पूछते हैं कि ख्वाबों में किसे देखते हो ?
और हम हैं कि इक उमर से सोये ही नहीं
वो सोचते हैं कि हम रोये ही नहीं
वो पूछते हैं कि ख्वाबों में किसे देखते हो ?
और हम हैं कि इक उमर से सोये ही नहीं
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
0
टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


Thursday, October 21, 2010
कश्मीर ...
फलों की नज़र-नवाज़ रंगत देखी
मखलूक की दिल-गुदाज़ हालत देखी
कुदरत का करिश्मा नज़र आया कश्मीर
दोजख में समोई हुई जन्नत देखी
इस बाग में जो कली नज़र आती है
तस्वीर-ए-फ़सुर्दगी नज़र आती है
कश्मीर में हर हसीन सूरत 'फानी'
मिटटी में मिली हुई नज़र आती है
- फानी बदांयुनी
मखलूक की दिल-गुदाज़ हालत देखी
कुदरत का करिश्मा नज़र आया कश्मीर
दोजख में समोई हुई जन्नत देखी
*****
इस बाग में जो कली नज़र आती है
तस्वीर-ए-फ़सुर्दगी नज़र आती है
कश्मीर में हर हसीन सूरत 'फानी'
मिटटी में मिली हुई नज़र आती है
- फानी बदांयुनी
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Thursday, October 21, 2010
1 टिप्पणियाँ
Email This
BlogThis!
Share to X
Share to Facebook


लेबल:
कश्मीर,
फानी बदांयुनी