पलकों के किनारे जो हमने भिगोये नहीं
वो सोचते हैं कि हम रोये ही नहीं
वो पूछते हैं कि ख्वाबों में किसे देखते हो ?
और हम हैं कि इक उमर से सोये ही नहीं
Saturday, October 23, 2010
हम रोये ही नहीं...
प्रस्तुतकर्ता
शागिर्द - ए - रेख्ता
पर
Saturday, October 23, 2010
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