कौन हूँ क्या ये जानती हूँ मैं ?
शायद खुद ही को नहीं पहचानती हूँ मै !
कौन हूँ ... ?
मात-पिता से नाम मिला है ,
खान-पान-आराम मिला है,
समाज में स्थान मिला है,
किन्तु सोच रही हूँ मैं,
क्या खुद की है पहचान कहीं पर ?
लेकर यही प्रश्न हृदय में,
अपनी राह बनाती हूँ मैं ,
कौन हूँ क्या ...?
मेरी भी एक राह अलग हो,
जग में मेरा स्थान अलग हो,
पर,
क्या खुद को परिचय जानती हूँ मैं ?
कौन हूँ क्या ... ?
देख के सब कयास लगाते,
मेरा आईना मुझे दिखाते ,
मुझे बदलने को तत्पर सब,
अपनी -अपनी राह बताते,
क्यूँ वे मुझे राह दर्शाते,
भ्रमित होते राहों से !
क्या खुद की राह जानते हैं वे ?
पर अंतर्मयी राह बनाती,
लक्ष्य सिमरती पग बढाती,
यात्रा का आनंद उठाती हूँ मैं ,
हाँ अब खुद को पहचानती हूँ मैं ...!
आकांक्षा शर्मा
1 टिप्पणियाँ:
अपनी पहचान को खोजती हुई बड़ी खूबसूरत रचना लिखी है
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