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Saturday, July 10, 2010

ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है...



मत कहो आकाश में कुहरा घना है
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है


सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से
क्या करोगे सूर्य को क्या देखना है ?


इस सड़क पर इस कदर कीचड बिछी है
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है


पक्ष और प्रतिपक्ष संसद में मुखर है
बात इतनी है की कोई पुल बना है


रक्त वर्षों से खून में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है


हो गई है घाट पे पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है


दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है



- दुष्यंत कुमार


3 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

रक्त वर्षों से खून में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

वाह्…………क्या बात कही है।

Unknown said...

रक्त वर्षों से खून में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

Unknown said...

Awesome