हमारी जेब से जब भी कलम निकलता है
सियाह शब् के यजीदों का दम निकलता है
तुम्हारे वादों का कद भी तुम्हारे जैसा है
कभी जो नाप के देखो तो कम निकलता है
ये इत्तेफ्फाक है मंज़र या कोई साज़िश है
हमेशा क्यूँ मेरे घर से ही बम निकलता है
- मंज़र भोपाली
हमारी जेब से जब भी कलम निकलता है
सियाह शब् के यजीदों का दम निकलता है
तुम्हारे वादों का कद भी तुम्हारे जैसा है
कभी जो नाप के देखो तो कम निकलता है
ये इत्तेफ्फाक है मंज़र या कोई साज़िश है
हमेशा क्यूँ मेरे घर से ही बम निकलता है
- मंज़र भोपाली
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment