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Thursday, July 15, 2010

इत्तेफ्फाक या साज़िश ...



हमारी जेब से जब भी कलम निकलता है


सियाह शब् के यजीदों का दम निकलता है

तुम्हारे वादों का कद भी तुम्हारे जैसा है

कभी जो नाप के देखो तो कम निकलता है



ये इत्तेफ्फाक है मंज़र या कोई साज़िश है


हमेशा क्यूँ मेरे घर से ही बम निकलता है



- मंज़र भोपाली

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